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कवि और कविता

Friday, January 28th, 2011

दया प्रसाद गोलिया

ड्राइंग रूम में बैठकर
अट्टालिकाओं पर कविता लिखना
कितना प्रगतिवादी है
तालियों की गडगडाहट
कितनी बड़ी शाबाशी है

मत लिख
सत्ता शिखर स्थायी का यशगान

मत लिख
हवा से हवा में मारक कवितायेँ

मत लिख
प्रेयसी के चाँद की कवितायेँ
अब वह रहस्य नहीं है

मत लिख
लौट आया है मानव चाँद से

लिखना हो तो अब धरती की कविता लिख
क्या भुखमरी शोषण नहीं तेरी पृथ्वी पर
लिखना हो तो समानता की कविता लिख

विश्वगुरु कहलाने वाले
कितनी अज्ञानता है तेरे देश में
लिखना है तो विज्ञानं की बात लिख

क्या खड़ा है निठल्ला सा इस मोड़ पर
मूकदर्शक बना हुआ
इक्कीसवी सदी के कवी
सरेआम नचाई जा रही है
नंगी कर अबलायें इस देश में
लिखना हो तो अत्याचार पर लिख

नेताओं की बात मत लिख
नर मारा या हठी
वाह रे धर्मराज
इक्कीसवी सदी के कवी
कवितायेँ मत लिख

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