Vruttant Manwatkar
रसिक-रोमानी दिन है आएँ
हंगामे का ‘फैशन’ लाएँ.
“अभिव्यक्ति की आज़ादी दो!”
जीने का हक़ भाड़ में जाये.
क्रांति दम्भ में लाल जवानी
रंग, उत्सव में बदलती है.
आज भी जब जब चौराहे पर
अवर्ण औरत जलती है.
विषय-भोग की
भ्रांतियों का
मानव मन पर तगड़ा पहरा.
स्व-साहस झंखझोरता यहाँ
विषमता का रोग ये गहरा.
दमन से पीड़ित मनो-गुलामी
मद-धुएँ में मचलती है.
आज भी जब जब चौराहे पर
अवर्ण औरत जलती है.
फूको, रोजा, बोउवा भी
पिंजरा तोड़ के हर्षित उड़ते.
जले होलिका तो जलने दो
“बुरा ना मानो”, नाच के कहते.
गर्वित-पंडित-प्रगतिवाद की
चमड़ी छल कि पिघलती है.
आज भी जब जब चौराहे पर
अवर्ण औरत जलती है.
शास्त्रों की कू-सत्ता बनी है
जातीवाद की मूँछे तनी है.
बंधुभाव की नींव गिराती
जड़े धरम की बड़ी घनी है.
सदा स्त्री-घातक हिन्दू संस्कृति
अपनी आग उगलती है.
आज भी जब जब चौराहे पर
अवर्ण औरत जलती है.
आज भी जब जब चौराहे पर
‘बहुजन’ औरत जलती है.
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Vruttant Manwatkar is a Research Scholar in Jawaharlal Nehru University, Delhi.
Cartoon by Unnamati Syama Sundar.