सुरेश जोगेश (Suresh Jogesh)
सुबह से भीड़ जमा होनी शुरू हो गयी थी जंतर-मंतर पर. देखते ही देखते आसमान का रंग जमीन ओढ़ने लगी थी. वही आलम सोशल मीडिया का भी था. हर ओर नीला ही नीला. मुख्यधारा मीडिया का काम इस बार सोशल मीडिया बखूबी निभा रहा था. जो तस्वीरें आती रही उनमें फ्रांस, अमेरिकन और जर्मनी के कुछ पत्रकार कैमरा और माइक के साथ थे पर दिलचस्प बात यह रही कि भारतीय मीडिया घरानों के दिल्ली के दफ्तरों में बैठे संवाददाताओं और एंकरों ने बाहर निकलने की जहमत नही उठायी. एक-दो नही, लगभग सभी. हालांकि इस बात की पहले से ही प्रबल उम्मीद थी. भारतीय मीडिया के 180 देशों के मीडिया में 136 वें नंबर होने के प्रमुख कारण को यहां साफ देखा जा सकता था. जो मीडिया दबे-कुचलों, शोषितों की आवाज नही बन सकती, शोषक जाति से सवाल नही कर सकती. जिस पर सिर्फ अप्पर कास्ट का एकाधिकार है. जो निष्पक्षता और न्याय की जगह राष्ट्रवाद और धार्मिकता को पैमाना मानता है उसके 180 वें नंबर होने पर भी भला कोई सवाल हो सकता है क्या?
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Talk on Bheem army on NDTV
पेश है जंतर-मंतर पर भीम आर्मी के प्रदर्शन की कवरेज पर खाश रिपोर्ट:
- Indian Express में 3-4 आर्टिकल छपे है. जिसमे एक भीम आर्मी से परिचय करवाता है तो शेष 2-3 कल के कार्यक्रम की मुख्य बातों को लेकर. अखबार के दिल्ली संस्करण ने मुख्य पृष्ठ पर कुछ जगह दी है. वहीं हिंदी संस्करण (जनसत्ता) की बात करें तो दो आलेख छपे हैं, 5000(?) की भीड़ का दावा किया गया. एक आलेख इनपुट IANS से बताता है. दूसरी ओर अखबार के दिल्ली संस्करण के मुख्य पेज से यह खबर गायब है. मुख्य पेज पर आईपीएल और भागवत गीता की पढ़ाई को जगह दी गयी है.
- NDTV ने इस पर 2 आर्टिकल किये हैं. एक शॉर्ट आर्टिकल हिंदी व एक अंग्रेजी में. जिसके लिए इनपुट PTI से लिया गया है. NDTV लिखता है कि सहारनपुर हिंसा के विरुद्ध यहां लगभग 5 हजार लोगों प्रदर्शन किया. चंद्रशेखर पर दर्ज मुकदमे वापस लेने के लिए आवाज उठाई गई. कुल मिलाकर कुछ खाश कवरेज नही है NDTV जैसे चैनल के लिए. टीवी कार्यक्रम में NDTV संवाददाता और एंकर दोनों ने ही एक ओर जहां चर्चा बसपा के संभावित विकल्प बताने वाली बात को हाईलाइट करके शुरू की तो दूसरी ओर दलितों के पोस्टर को लेकर कहा कि, देखिए, हिंसा इस तरह से भड़काई जाती है. पोस्टर चंद्रशेखर के खिलाफ कार्यवाही के विरुद्ध चेतावनी को लेकर था, वहीं पुलिस के सामने तलवारें लहराते राजपूत युवकों की वायरल हुई तस्वीरें गायब दिखी, सहारनपुर की इस घटना को शुरू से दिखाया गया है फिर भी. भीम आर्मी खुद यहां सवालों के घेरे में दिखी. कभी राजपूत युवक की मौत (पोस्टमॉर्टेम के अनुसार दम घुटने से) को लेकर तो कभी अत्याचार के आरोपों की सत्यता को लेकर. स्क्रीन काली करके खुद को निस्पक्ष दिखाने वाले चैनल का अपना कवरेज उतना निस्पक्ष नही दिखा. यहां भी 5 हजार की भीड़ बताई गई है.(Ref: https://youtu.be/IO79pMp7JCA)
- टाइम्स ग्रुप (TOI, NBT etc): टाइम्स ऑफ इंडिया, नवभारत टाइम्स व इकनोमिक टाइम्स सभी ने इसे मुख्य पेज की खबर नही माना है. इलेक्ट्रॉनिक माध्यम की बात की जाय तो TOI ने 50 हजार से ज्यादा की भीड़ का दावा किया है. दो आलेख छपे हैं, TNN से इनपुट के आधार पर. ग्राउंड रिपोर्टिंग नही है. नवभारत टाइम्स ने भी दो आर्टिकल डाले हैं.
- बीबीसी ने 4-5 आलेख लिखे है. प्रदर्शन की कवरेज व भीम आर्मी से परिचय पर. कुल मिलाकर कवरेज उम्मीदनुसार रहा है. बीबीसी ने भारतीय मीडिया की बेरुखी और असंवेदनशीलता पर सवाल उठाने के साथ भीड़ को कम बताने का भी आरोप लगाया है. बीबीसी के अनुसार भारतीय मीडिया के बड़े घरानों ने भी इसे 5-10-15 हजार का आंकड़ा बताया है जबकि भीड़ इससे कहीं ज्यादा थी.
- इंडिया टुडे ने जहां इस पर पर 2 आर्टिकल डाले हैं इसके हिंदी सहयोगी चैनल आज तक से यह खबर गायब ही दिखी जिसे अपेक्षाकृत ज्यादा पढ़ा/देखा जाता है.
- The Hindu ने भी बड़ी खबर की तरह कवर नही किया है, भीड़ को कम आंकने की कोशिश की है. मुख्य पृष्ठ से यह खबर गायब दिखी.
- Altnews (प्रतीक सिन्हा) पूरी तरह से अछूता है इस विशाल प्रदर्शन से.
- Bhaskar ने इसे ज्यादा तवज्जो नही दी है. दिल्ली संस्करण के मुख्य पृष्ठ से भी गायब है खबर. पेज नंबर 4 पर एक तस्वीर के साथ एक कॉलम में किसी तरह निपटाया गया है।
- Jagran ने पेज नंबर 7 पर दो कॉलम की फोटो समेत खबर दी है। बताया गया है कि दो समुदायों के बीच हिंसा हुई थी।
- अमर उजाला में भी पेज नंबर 7 पर एक खबर है, फोटो समेत तीन कॉलम। लेकिन कोई विश्लेषण नहीं। पुलिस की इजाज़त बग़ैर हुआ प्रदर्शन, इस पर ज़ोर है।
- Patrika: आरक्षण विरोधी और संविधान की “धर्म निरपेक्ष” नीति से नाखुश गुलाब कोठारी के अखबार पत्रिका ने पेज नंबर 14 पर एक तस्वीर के साथ एक कॉलम की ख़बर छापकर ख़ानापूर्ति कर ली है।
भीम आर्मी के ऐतिहासिक प्रदर्शन को लेकर ख़ासतौर से हिंदी अख़बारों और चैनलों की यह उपेक्षा बहुत कुछ कहती है। यह संयोग नहीं कि तमाम दलित नौजवान अब ‘अपने’ मीडिया की बात ज़ोर-शोर से कर रहे हैं। कथित मुख्यधारा का कारोबारी मीडिया, उनका नहीं है, यह बात साफ़ हो चुकी है।
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Suresh Jogesh is a student at IIT Roorkee and a social activist. He can be reached at sureshjogesh48@gmail.com