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राजस्थान में दलित महिला आंदोलन के नेतत्व व् न्याय प्रणाली की हकीकत पर एक नजर
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राजस्थान में दलित महिला आंदोलन के नेतत्व व् न्याय प्रणाली की हकीकत पर एक नजर

suman devathiya

सुमन देवाठीया

suman devathiyaमै किसी समुदाय की प्रगति हासिल की है, उससे मापता हु l
~ डा0 भीमराव अम्बेडकर (बाबा साहब )

जैसा की भारत देश में व्याप्त वर्ण व् जाति व्यवस्था की वजह से दलित आये दिन अत्याचारों व् हिंसाओं का सामना कर रहे है l इसी के साथ जंहा कही भी इसी व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई जाति है तो हमारें कार्यकर्त्ताओ की हत्या तक कर डी जाति हैl अनेक प्रकारेन आंदोलनों को दबाया जाता है , पीडितो को न्याय से वछित किया जा रहा है l

अगर हम दलितों में भी दलित महिलाओ की बात करे तो पायगे, की आये दिन इस जाति व्यवस्था व् पितृसत्ता की प्रताड़नाए इन्हें रोज़मरा की जिन्दगी में अपना शिकार बनाकर गंभीर व् जघन्य अपराधो को जन्म दे रही है l जिसकी वजह से बहुत सारी महिलाए अपने अधिकारों से वंछित है, और स्वंतंत्र भारत की नागरिक हिने पर भी समाजिक समानता, आर्थिक उत्थान, राजनितिक सशकितकरण, शैक्षणिक अधिकार जागरूक, विकास, मुलभुत सुविधाओ और नेतत्व से वंछित रखा हैl

इन व्यवस्थाओ के चलते हम उदाहरण के तोर पर देखते है तो हमारे आखों के सामने ज्वलंत तस्वीर है की 29 मार्च 2016 को हमारे समाज की होनहार बालिका सुश्री डेल्टा मेघवाल, निवासी त्रिमोही, बाडमेल की शैक्षणिक संसथान में बलत्कार कर हत्या की गयी लेकिन पीडिता परिवार आज भी न्याय के लिए दर –दर भटक रहा है और सरकार द्वारा न्याय हित में प्रयास करने की बजाय पीडिता परिवार को जाँच के नाम पर गुमराह किया गयाl इस तरह की हत्याएं, योन शोषण व् जातीय हिंसाए कर आये दिन हमारी आखें पढने व् देखने की मजबूर है जो रोज किसी न किसी रूप में दलित महिलाओ की जिन्दगीयो को छीन रही है और उन्हें मानवता की पहचान से वंछित कर रखा है l

आज भी न्यायहित में उनके लिए बनाये गये कानून व् व्यव्स्थाए उन्ही के विरोध में कम करती नजर आ रही है जिसकी वजह से पीलीबंगा, जिला हनुमानगड़ में हुये सामूहिक बलत्कार की पीडिता को दो साल तक जाँच के नाम पर चुप कर उन्हें न्याय से वंछित करने की साजिश कायम बनी हुई है l इस राजस्थान में केवल पीलीबंगा की पीडिता की ही न्यायायिक व्यवस्था में यह स्थिति मही है बल्कि हर अत्याचार की पीडिता की यही हालात है l राजस्थान की हर दलित महिलाऐं हर स्तर पर कभी क़ानूनी न्याय की गुहार करती नजर आ रही है तो कही स्वास्थ्य , शिक्षा , रोजगार ,समाजिक ने व् पुनर्वास जैसे अधिकारों के लिए झूझती नजर आ रही है l

इस सम्पूर्ण वर्तमान स्थिति को बदलने व् न्याय दिलाने के लिए अनेक आन्दोलन भी चल रहे है जिसमे दलित , महिला व् अनेक प्रकार के आंदोलन मजबूती के साथ दलित महिलाओ के अधिकारों को सुरक्षित कर समाजिक समानता को बढ़ाने व् बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए प्राथमिक रूप से कार्य कर रह है l इन आंदोलनों में दलित महिलाओ ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है , चाहे वो अवसर उन्हें किसी भी रो में मिला हो l लेकिन सवाल अब इस बात का हैं की इनकी सभी जगह सक्रिय भागीदारी हिने व् इनके व् पक्ष में बने कानून , विशेष कानून , सरकार विभाग , योजनाये और आयोगों के साथ – साथ इन अनेको आंदोलनों द्वारा भी कम करने के बावजूद भी इनकी समाजिक स्थिति इतनी हासिये पर क्यों है ? या कौन सी भूल है जिसकी वजह से समाज की मुख्यधारा में नही आ पा रही है ? या फिर दलित महिलाओं के मुद्दे व् समस्याओ को प्रथमिकता से नही लिया जाता है या यहा भी ये जाति , मनुवाद सोच व् पित्र्सत्ता उतनी ही प्रभावी रूप से कम कर रही है ? इस स्थिति का आंकलन तो अब बारीकी से दलित महिलाओ को करना होगा क्योकि इन सब जाति मनुवादी सोच, पित्र्सत्ता सम्प्रदायिकता की सरंचना में कब तक जकड़ी रहेगी l

दलित महिला आन्दोलन के साथ जुड़कर काम करने के दौरान एक बात साफ़ तौर पर समझ आई के हम दलित महिलाओं के नेतृत्व को न ही समाज आसानी से स्वीकार करेगा और ना ही कोई और आन्दोलन स्वीकार करेगाl इसी वजह से पूरे भारत में दलित महिलाओं का नेतृत्व ना के बराबर हैंl इसी नेतृत्व की तुलना राजस्थान के विषय में देखेंगे तो पायेंगे कि इतने मज़बूत दलित व महिला आन्दोलन होने के बावजूद दलित महिला नेतृत्व के कदमों के निशान तक नहीं दिखाई देते हैंl फिर भी भारत सहित राजस्थान में भी कुछ ऐसे आन्दोलन करता लोग हैं जो जाति व पित्र्सत्ता से ऊपर उठ कर वंचित नेतृत्व को उभारने में सहयोग व प्रयास कर रहे हैं जो इस दलित महिलाओं के नेतृत्व के लिए न मात्र सकारत्मक पहलु देख सकते हैंl

उपरोक्त सभी गंभीर सवालों का जवाब मैंने अपने कार्य अनुभव से पाया हैं कि इन सभी आन्दोलनों में चाहे वो दलित आन्दोलन हो या महिला, अन्य मुद्दा व समुदाय आधारित आन्दोलन होl इन सभी आन्दोलन कर्ताओं ने एक बड़ा हिस्सा के नेतृत्व को नज़रंदाज़ किया हैं और उन्हें किसी भी आन्दोलन के नेतृत्व व पैरवी का हिस्सा नहीं बनाया हैं जिसकी वजह से आज भी राजस्थान में दलित महिला नेतृत्व की यह स्तिथि देखने को मजबूर हैंl मैं यहाँ पर एक बात और कहूँगी की राजस्थान में 40 वर्षों से सक्रिय कार्य करते हुए दलित महिला नेतृत्व करता के रूप में अजमेर निवासी कर्मठ दलित महिला कार्यकर्ता भंवरी बाई ने दलित महिला नेतृत्व की आन्दोलन में नीव डाली और बेशक इस नेतृत्व को उभारने में उन सभी आन्दोलन कर्ताओं को श्रेय जाता हैं जिन्होंने जाति और पित्र्सत्ता से ऊपर उठकर कार्य किया हैं और आज भी कर रहे हैंl इस लिए आज राजस्थान में मेरे लिए श्रीमती भंवरी बाई एक आदर्श सामाजिक दलित महिला नेता हैं, और उनके द्वारा जाति व पित्र्सत्ता के रूप में लड़ी गयी जंग और आन्दोलन इस क्षेत्र में मुझे आगे बढ़ने और कार्य करने की प्रेरणा देता हैंl लेकिन मुक्जे अफ़सोस तब होता हैं जब मैं राज्य स्तरीय दलित व महिला नेतृत्व में उनका नाम ज़्यादातर पीछे देखती हूँl तब ऐसा लगता हैं की आज भी दलित महिला नेतृत्व को नज़रंदाज़ किया जा रहा हैंl इसलिए अब समय आ गया हैं कि हम सभी को इस हकीकत को स्वीकार करना चाहिए ताकि हम सभी सामूहिक रूप से दलित महिलाओं के न्याय हित में बेहतर प्रयास कर सकेl

भंवरी बाई की तरह मैं भी राजस्थान में पिछले 15 सालों से कार्य कर रही हूँ और किसी जाति, वर्ण, वर्ग व जेंडर आधारित मुद्दों को बोहोत ही बारीकी से देखा हैंl जिसमें हर क्षेत्र में दलित महिलाओं को अपने अधिकारों को सुरक्षित करने और न्याय के लिए तड़पते ही देखा हैं, वोह चाहे सरकार, पुलिस, प्रशासन, आयोग या समाज से ही क्यों न जुदा हुआ हो, हर जगह उन्हें तिरस्कार किया जाता हैंl इन सभी मुद्दों को लेकर मैंने न्याय दिलाने, अधिकारों को सुरक्षित करने, जागरूकता लाने व नेतृत्व को उभारने का प्रयास किया लेकिन मेरे सामने भी जाति व पित्रसत्ता की दलित महिलाओं के प्रति नकारात्मक सोच स्तम्भ के रूप में चुनौती बन के खड़ी हैं और मुझे हर दिन इनका सामना करना पड़ता हैंl

इसीलिए मैं यहाँ पर मेरे संघर्ष को आपके साथ सांझा करते हुए कहना चाहती हूँ कि जब जब मैंने दलित महिलाओं के हित व नेतृत्व को उभारने व उनके मुद्दों को उठाने कि कोशिश की, तब तब इन्ही व्यवस्थाओं बे मुझे पीछे खींचने कि पूर्णकोशिश की और चरित्र को निशाना बना कर चुप करने की साज़िश तक की गयीl AIDMAM द्वारा राजस्थान में पहली बार दिनांक 18-28 अक्टूबर २०१६ तक ऐतिहासिक दलित महिला स्वाभिमान यात्रा का आयोजन किया गयाl इस यात्रा का पूर्ण रूप से मेरे द्वारा नेत्र्तव किया गया l इस यात्रा के दौरान मुझे जाति व पितृसत्ता की सोच व ढांचा का हर जगह सामना करना पड़ा और इन्ही सोच के लोगो ने इस यात्रा को सफल ना होने देने हेतु हर अपनी ओर से पूरजोर प्रयास किया l

इस यात्रा के दौरान संघर्षों का सामना तो करना पड़ा लेकिन राजस्थान की हर दलित महिला का यात्रा के दौरान उभर कर सामने आया दर्द हर रोज न्याय हेतु आवाज देता रहा है इसलिए सबसे पहले हमने राजस्थान की पुलिस की मानसिकता को परखा और वर्ष 2014 से 2016 तक के दलितों व दलित महिलाओ की सरकार द्वारा दर्ज किये गये प्रकरणों में जाँच में की गई कार्यवाही के पहेलुओ का अध्यन कियाl इस अध्यन से सामने आई तस्वीर हम दलित महिलाओ को चौकाने वाली रही जो मैं आपके साथ सांझा करना चाहती हु की इन आकंड़ो ने बहुत ही साफ तरीके से राजस्थान की सरकार, पुलिस, प्रसाशन व आयोगों की दलित महिलाओ के प्रति नकारत्मक व्यवहार व सोच को साबित करती है l क्योकि इन आकड़ो से पता चला की राजस्थान में पिछले तीन साल 2014 से नवबर 2016 तक के सरकार द्वारा अत्याचारों के प्रदेश में होई 21732 मामले दर्ज हुए है 1208 मामले बलत्कार व 280 के है l जिसमे पुलिस ने 11407 मामलो को अपनी प्राथमिक जाँच में झूठा माना है, जिनमे 433 मामले बलात्कार के है l वर्ष 2015 हत्या के मामलो में एफ़ lई l आर का प्रतिशत 19l35% था वो 2016 में बढ़ कर 26l92% हो गया, व्ही चालान का प्रतिशत 64l51% से घटकर 48l71% रह गयाl इसी प्रकार महिला यौन हिंसा/ बलात्कार के मामलो में 2014 में चालान का प्रतिशत जहां 51l96% था वो 2016 में घटकर 43l23% रह गयाl

crime graph

 उपरोक्त आंकड़ो के प्रकरणों में हमारे द्वारा गंभीर प्रकरणों की फैक्ट फाइंडिंग की गयी जिसमें पाया की राजस्थान में दलित व महिलाएं न्याय से आज भी वंचित इसलिए हैं जिसके मुख्या कारण हैं की क्योंकि दलित व खासकर दलित महिलाओं के प्रकरणों के संबंध में स्थानीय पुलिस अपनी सोची समझी साज़िश और जातिगत मानसिकता के साथ ज़्यादातर प्रकरणों में पुलिस द्वारा अपराध का दर्ज नहीं करना, घटना के अनुसार एफ़lआईlआर में जुड़ने वाली धाराएँ नहीं जोड़ना, जांच अधिकारी द्वारा निर्धारित 60 डी की समय अवधी में जांच रिपोर्ट न्यायलय में पेश नहीं करना, अत्याचार के शिकार पीड़ितों के समय पर सुरक्षा नहीं मिलना, बलात्कार जैसे गंभीर मामलों में पीड़ितों के 164 के बयान समय पर व महिला मजिस्ट्रेट के समक्ष नहीं करवाना, जांच अधिकारी द्वारा बलात्कार, यौन हिंसा व छेड़छाड़ के मामलों में पीड़ितों से थाने पर बुलाकर पूछताछ करना, अपराधियों को तत्काल गिरफ्तार नहीं करना, अपराधों की रोकथाम व सावधानी के लिए निर्धारित कानूनी प्रावधानों को लागु नहीं करना, अत्याचारों के मोनिटरिंग व रिव्यु के लिए राज्य, जिला व ब्लॉक स्तर पर गठित होने वाली कोम्मित्तीयाँ गठित नहीं करना, उत[उत्पीडन के शिकार पीदिथों के पुनर्वास अवं राहत के संबंध में अनावश्यक विलंभ व प्रदेश की सभी जिल्लों में विशेष न्यायलय नहीं खोलना आदि लापरवाही पुलिस व पसरकार द्वारा बढती जा रही हैंl

उपरोक्त मुद्दों व समयस्याओं के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए राजस्थान में मेरे नेतृत्व को सहयोग व समर्थन देने के लिए वर्त्तमान में मेरे साथ AIDMAM कवच के रूप में साथ दे रहा हैं और मुझे हर तरफ का समर्थन मिलता रहता हैं जिसकी वजह से वर्तमान में दलित महिलाओं के हित में बने मेरे सपने को साकार करने की ताकत और रास्ता मिल रहा हैंl

इसी के साथ यह भी महसूस किया हैं कि जिस तरह से मंच दलित महिलाओं के नेतृत्व को उभारने व अधिकारों को सुरक्षित करने के साथ मानसिक सहयोग कर रहा हैं, वो हमारे लिए बोहोत ही अनोखी रौशनी और हिम्मत हैंl लेकिन वर्तमान बेखौब स्तिथि को देखते हुए लगता हैं की अब भारत के हर कोने में इस तरह का समूह, संस्थाओं की ज़रुरत हैं और मुझे उम्मीद हैं कि वोनेतृत्व जल्द ही हर कोने व हर मुद्दे के साथ देखने को मिलेगीl क्योंकि कमी दलित महिलाओं में नेतृत्व की नहीं हैं बल्कि उनको सहयोग व समर्थन करने वालों कि हैं इसलिए अब इस दिशा कीओर दलित महिला नेतृत्व ने एक दुसरे को साथ देते हुए अपने आप को पलट लिया हैं और अपना नेतृत्व के साथ हर जंग लड़ते हुए अपने अस्तित्व को बचाने व अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ की आगाज़ कर चूका हैंl हम सभी को आशा हैं कि आप हमारे दर्द को समझते हुए हमारे साथ कदम से कदम मिलकर चलेंगेl

जय भीमll
धन्यवादll आपकी साथी
सुमन देवाठीया

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Suman Devathiya is a dynamic human rights activist from Rajasthanl She has worked in several Dalit rights organisations and is now leading All India Dalit Mahila Adhikar Manch – Rajasthan.