Sanjay Jothe उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम जितने बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हैं उससे कहीं अधिक दलित बहुजन राजनीति के लिए महत्वपूर्ण हैं. दलित बहुजन राजनीति के एक लंबे और संघर्षपूर्ण सफ़र का यह परिणाम दुखद है. लेकिन यह होना ही था. इस पराजय की प्रष्ठभूमि लंबे समय से निर्मित हो रही थी. ज्ञान, …
श्मशान और मंदिर इतना महत्वपूर्ण क्यों है??
Sanjay Jothe अक्सर ही ग्रामीण विकास के मुद्दों पर काम करते हुए गाँवों में लोगों से बात करता हूँ या ग्रामीणों के साथ कोई प्रोजेक्ट की प्लानिंग करता हूँ तो दो बातें हमेशा चौंकाती हैं। पहली बात ये कि ग्रामीण सवर्ण लोग मूलभूत सुविधाओं जैसे सड़क, बिजली, तालाब, स्कूल आदि बनवाने की बजाय मंदिर, …
हिन्दू भगवानो को परेशान मत कीजिये, रविदास बुद्ध कबीर से मार्गदर्शन लीजिये
Sanjay Jothe परम संत रविदास का नाम ही एक अमृत की बूँद के जैसा है. जैसे भेदभाव, छुआछूत और शोषण से भरे धर्म के रेगिस्तान में अपनेपन, समानता और भाईचारे की छाँव मिल जाए. जैसे कि प्यास से तडपते हुए आदमी को ठंडा पानी मिल जाए. ऐसे हैं संत रविदास. इनकी जितनी तारीफ़ की …
आम आदमी पार्टी का क्षणिक चमत्कार और अंबेडकरवाद को मिलती धीमी बढ़त
Sanjay Jothe अभी भारत की राजनीति में जितने प्रयोग हो रहे हैं वे सब एक बड़े विस्तार में बहुत सारी संभवनाओं को खोल रहे हैं। कांग्रेस और बीजेपी की राजनीति से मोहभंग हो रहा है और नए मोह निर्मित हो रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण है AAP की सफलता जो एक शिक्षित और शहरी मध्यम …
रोमांच, मनोरंजन और ब्राह्मणवादी प्रतीक
Sanjay Jothe रहस्य रोमांच के बहाने मनोरंजन की तलाश करते समाजों या लोगों पर कभी गौर कीजिये गजब के परिणाम हाथ लगेंगे। रहस्य और चमत्कार तो खैर अतिरंजित बाते हैं, सामान्य मनोरंजन के चुनाव की प्रवृत्ति भी पूरे समाज के मनोविज्ञान को नंगा करने के लिए काफी है। किस तरह के टीवी सीरियल्स और …
भारतीय साहित्य, सिनेमा और खेल की सामाजिक नैतिकता का प्रश्न
Sanjay Jothe कला और सृजन के आयामों में एक जैसा भाईचारा होना चाहिए जो कि भारत में नहीं है। ऐसा क्यों है? ऐसा होना नहीं चाहिए, लेकिन है। इनके बीच इस तरह मेलजोल और एकता क्यों नहीं है? एकता एक नैतिक प्रश्न है अगर आपकी नैतिकता विखण्डन और विभाजन के चारे से बनी है …
सत्य, सत्याग्रह, शूद्र, दलित और भारतीय नैतिकता
संजय जोठे (Sanjay Jothe) सामाजिक राजनीतिक आन्दोलनों में एक लंबे समय से “आत्मपीड़क सत्याग्रह” प्रचलन में बने हुए हैं. ऐसे भूख हड़ताल, उपोषण, आमरण अनशन जैसे तरीकों से समाज के एक बड़े वर्ग को झकझोरने में सफलता भी मिलती आई है. ये तकनीकें और “टूल” सफल भी रहे हैं और उनकी सफलताओं से जन्मी …
विदेशों में बुद्ध और कबीर क्यों, राम और तुलसी क्यों नहीं?
संजय जोठे (Sanjay Jothe) सनातनी षड्यंत्रकार जब अध्यात्म और धर्म की व्याख्या करते हैं तब वे चर्चा और प्रचार के लिए अपने पवित्र पुरुषों को नहीं चुनते। वे उन्हें तहखानों में सुरक्षित रखते हैं। धर्म प्रचार शास्त्रार्थ आदि के लिए वे आदि शंकर या तुलसीदास को नहीं चुनते बल्कि वे बुद्ध, गोरख, रविदास और …