Gurinder Azad
शुक्रिया बाबा साहेब !
आपके चलते
हमें किसी से कहना नहीं पड़ता
कि हम भी इंसान हैं !
उनके अहं को जो भी हो गवारा
लेकिन अब तस्दीक हो चुका है
कि बराबरी थाली में परोस कर नहीं मिलती
आबरू की धारा किसी वेद से नहीं निकलती
बड़ा बेतुका है
कल्पना करके सोना
सुबह अलग सा कोई नज़ारा होगा
या धीरे धीरे सब सही हो जायेगा
अपनेआप !
कुछ मुद्दों पर कोई बहस नहीं होती
जैसे रियायतों में ढला इन्साफ
वेदों धर्मों के मुंह से कंटी छँटी इंसानियत का जाप
कुछ चीज़ों से समझौते नहीं हो सकते
जैसे कि भगवी विचारधारा से
कुछ लड़ाईयां जड़ों की होती हैं
ज़मीन से जुडी होती हैं
वजूद में पिघली होती है
आज हम इन सबसे
खूब आशना हैं !
शुक्रिया बाबा साहेब कि आपके चलते
मैं ये सब लिख पा रहा हूँ
डंके की चोट पे!
~ गुरिंदर आज़ाद
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