Javed Akhtar (जावेद अख्तर)
कमाना खाना बचाना
पीढ़ी दर पीढ़ी से शामिल है बेंचू कुंजड़ा की किस्मत में
उसे फुर्सत ही कहां है कि वह बहस करे आरक्षण पर
चर्चा करें सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर
सवाल उठाए धारा 341 की धर्मनिरपेक्षता पर
वह तो बस मस्त है अपनी अस्त-व्यस्त दुनिया में
दस जने का परिवार
बकरियों की सानी छितराती मुर्गियाँ
भैंस का गोबर
बीमार पंड़वा
लोना खाई दीवारें
टपकता छप्पर
ढनगा हुआ लोटा
अधनंगे बच्चे
टूटी हुई खटिया
कुछ और देखने का मौका ही कहां देते है उसे
कि वह देखेे और सवाल उठाए
धरा 341 की धर्मनिर्पेक्षता पर
हिसाब मांगे वक्फ़ की सम्पत्ती का
बात करे हिस्सेदारी की
उसका जीवन तो बस वही दाल आटा है
एक दिन सय्यद साहब मदरसे का चंदा करने आए
और बेंचू को टोपी पहना गए
अब बेंचू का लड़का भी
हील हील कर कुछ रटने लगा था
लेकिन अब बेंचू की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई थीं
मदरसे के लिए बढ़ चढ़ कर चन्दा देना
बड़े पीर साहब के उर्स पर डेग चढ़ाना
जैसे फर्ज हो गया था उसके लिए
मगर वह खुश था
बेंचू को बस एक ही मलाल था
कि वह नमाज़ के लिए वक्त नहीं निकाल पाता
मगर हाँ क्या मजाल जो एक भी उर्स मुबारक या जलसा
उसके बगैर हो जाए
आखिर जन्नत के लिए सीढ़ी भी तो जरूरी है
अजमेर शरीफ, वारिस पिया
अब्बू मिंयाँ दादा मिंयाँ
घोड्सहिदन बाबा बुजरुग् बाबा
मुनव्वर शाह बाबा पांच पीर बाबा
आस पास की ऐसी कोई मजार या चौखट नहीं
जहाँ बेंचू ने माथा न टेका हो
आखिर जन्नत के लिए सीढ़ी भी तो जरूरी है
उसके पास समय ही कहाँ है
कि वह समझे
डेमोक्रेसी ब्यूरोक्रेसी और मीडिया की सांठ गांठ को
परसाल पुत्तन का लड़का मर गया था
तालाब में डूबकर
अख़बार में आई थी खबर
डी एम एस डीएम भी तो आए थे
उसके लिए तो बस यही है
शासन प्रसासन और मीडिया
मरने मारने की खबर
कौनो ससुर खाय का दै देइ का यार
बेंचू कमाता है खाता है बचाता है
और त्यौहार आय जाता है
बेंचू कमाता है खाता है बचाता है
और फिर त्यौहार आय जाता है
अब अगर त्यौहार से कुछ बचना है
तो बच्चे का खतना है
देखते देखते समय बीत जाता है
बिटिया सायानी हो जाती है
और फिर शादी ब्याह
अब बेंचू को मूतने तक की फुरशत नहीं
वो कैसे बात करे मार्क्सवाद की अम्बेडकरवाद की
वो कैसे समझे मनुवाद को पूंजीवाद को
वो क्या करे
ग्लोब्लाइजेसन का कैपिटलाइजेशन का
वह तो समझता है
यह सब खाए अघाए लोगों के लिए है
लेकिन
यह बात बेंचू से बेहतर
देश का सत्ताधारी वर्ग समझता है
सय्यदवाद ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद के दुर्गुणों से युक्त
देश का सत्ताधारी वर्ग समझता है
अगर देश का बेंचू पेटभर खाने लगेगा तो
राजनीति करने लगेगा
और जब राजनीति करने लगेगा तो
हिस्सेदारी मांगेगा
और जब हिस्सेदारी मांगने लगेगा
तो बिना मेहनत के
लड्डू लावन लापसी नहीं मिलने वाली
जो वह नही चाहता
और वह इसलिए देश की 70% आबादी के सामने रोटी की समस्या बनाए रखना चाहता है
वह केवल चाहता ही नहीं
इसके लिए उपक्रम भी करता है
देश के गोदामों में
हजारों टन अनाज सड़ा दिए जाते हैं
देश का 80% संसाधन
20% लोगों को लुटा दिए जाते हैं
देश का बजट
चंद लोगों द्वारा हजम कर लिया जाता है
लाखों बैकलॉग भर्तियां नहीं भरी जाती
और देश के 80% लोगों को
थमा दिए जाते हैं झुन झुने…
कभी तीन तलाक के
कभी लव जिहाद के
कभी मंदिर मस्जिद के
कभी 370 वाले कश्मीर के
जिसे बजा रही है बेचू की पीढ़ियां
सदियों से
झुन झुन झुन झुन झुन………………..
एक दिन सय्यद साहब का लड़का
दाढ़ी मूँछ आ घोटे सूट बूट में
टाई लगा के आया था
बता रहा था
किसी यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी का प्रोफ़ेसर है
और उसकी वाइफ
सरकारी अस्पताल में स्टाफ नर्स
अरे हां ! वही सैयद साहब
जिसने बेंचू को एक दिन टोपी पहनाया था
देसी मुर्गा लेने आया था
बेंचू ना चाहते हुए भी
बिना मोल भाव किए
अपने दरबे का सबसे हिटलर मुर्गा पकड़ लाया था
पर पता नहीं क्यों
बेंचू को कुछ अंदर ही अंदर काट रहा था
बूढ़ा बेंचू भुनभुना रहा था
मुर्गी पाली हम
और अंडा खांय सैयद साहब
बकरी पाली हम
और कुर्बानी करै सैयद साहब
बाग ताकी हम और फल खांय सैयद साहब
चंदा देई हम
और मदरसा चलाएं सैयद साहब
वोट देई हम और मंत्री बनै सय्यद साहब
ऐसा लग रहा था जैसे
मुर्गा के बहाने बेचू की सदियों की भड़ास फूट पड़ी हो
खटिया पर पड़ा बेंचू जैसे अल्लाह ताला से
शिकायत कर रहा हो
सबसे ऊंचा तो हम ही उठाए थे अलम
लिप्टस पर चढ़कर बारह वफात मेंबांधा था अपना सबसे ऊंचा परचम
रोजे रखकर भी तो किया था मातम
तो फिर क्यों मालिक
क्यों नहीं बदली हमारी किस्मत
बेंचू को आज भी याद है
सैयद साहब कहते थे
नहीं मिलती मुसलमानों को नौकरी
यह बात अब उसे तीर की तरह चुभ रही थी
सच ही तो कहते हैं सैयद साहब
कहां मिलती है पसमांदा मुसलमानों को नौकरी
कब्बन का लड़का
जिस मदरसे में 700 रुपए महीने में पढ़ाता था
वह मदरसा जब एड हुआ
तो चपरासी तक की जगह भी नहीं मिल पाई थी उसे
सारी सीटें तो सैयद साहब के
चाचा जात खालाजात मामू जात बेटों से ही भर गई थी
बागड़ हाफिज जी तो एक साल पहले ही
कमेटी की साजिश का शिकार हो गए थे
अब बेंचू को कुछ कुछ समझ में आ रहा था
अब वह जाग रहा था
उसकी आंखें लाल हो गई थी
चेहरा तमतमा उठा था
हाथ में मुर्गा थामें सय्यद हिम्मत नहीं जुटा पाया
की कह दे मुर्गा ज़िबह करने को
मुर्गा लेकर वह दबे पांव निकल गया
उसकी चोरी पकड़ी जा चुकी थी……
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जावेद अख्तर, मास्टर इन पोलिटिकल साइन्स ,भीखमपुर मूरतगंज कौसाम्बी यूपी