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अभी तो बाकी है…

Friday, December 23rd, 2016

 

Renu Singh

 

आते हैं कुछ धुंधले नज़र, अपने पैरों के निशान,renu-singh
अभी तो बाकी है खुद से खुद के पहचान ।    

अभी तो मिली है परिंदों को परवाज़,
अभी तो छेड़ा है उम्मीदों ने साज़ ।

अभी तो शुरू हुआ है नव्ज़-ए-ज़ोर का तूफ़ान,
अभी तो मिली है मंज़र- ए- खाक़ को ज़ुबान ।

माना आज़ादी हक है तुम्हारा,
पर आज़ाद थे कब तुम?

था आबाद कहाँ आशियाँ तुम्हारा?
कहाँ सुना कभी तुमको किसीने?

जब सी दिया हलक तुम्हारा,
जब रोक दिए कदम तुम्हारे ।

चल चलकर तराश ले खुदको तू,
बुलंदियों का ये सफ़र नहीं आसाँ ।

तबियत से तलाश ले खुद की हुस्न- ए- पेशानी की बसर,
कि कोई रोक न पाए तेरी धड़कती रवानियों का सफ़र ।

समेट कर रख ले अपनी रूह में इस कदर,
की न सुन पाए तू, खुद से खुद की बेमानियों कि ख़बर ।

के, हर जद्द-ओ-जेहद हो मुकम्मल तेरी,
हर रज़ा खुद, तुझ-पर मेहेरबान ।

कर खुद को रिहा इन ज़माने के बेतुके, ग़ैर- मुतालिक़ फरमानों से,
है ललकारे तेरे होने पर, हाथ में लिए जो कमान ।

हर अक्स में झिलमिलाए बस बुलंदियों का चमकता शिखर,
कर खुद को बेख़ौफ़, ज़माने की इन जंजीरों से, बे- खबर ।

ठहर न जाये किसी की गुज़ारिश पर तू यूँही,
जायज़ है, तेरी नाकामियों की गुज़ारिश तो वो किया ही करते हैं ।

बिना किसी तक़ल्लुफ के,जिन्हें है तकलीफ़ तेरे होने से,
तेरी बेख़ौफ़ उड़ानों से, तेरी मोहारत के किस्से- कहानियों से ।

जो महरूम हैं तेरे हुनर की पहचान से,
या फिर तेरे गहरे पड़े क़दमों के निशाँ से ।

तू कर उन्हें आगाह,
तू कर उन्हें आगाह….

कर रुबरुह… तमाम गुलामी के खिदमतगारों को,
जो न जाने कबसे हैं बने फिरते, खालिक-ए-खाक़ तेरे ।

तो बनाये चल काफिले….
बढ़ाये चल काफिले…..
आबाद रहे ये काफिलें….
रौशन रहे ये काफिले…….

आते हैं कुछ धुंधले नज़र अपने पैरों के निशान,
अभी तो बाकी है खुद से खुद के पहचान ।

अभी तो मिली है परिंदे को परवाज़,
अभी तो छेड़ा है उम्मीदों ने साज़ ।

~~

नव्ज़-ए-ज़ोर: sturggle, toil, मंज़र- ए- खाक़: sight of destruction, हुस्न-ए-पेशानी: beautiful-forehead,खालिक-ए-खाक़: creator of demise.

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Renu Singh, hails from Lucknow, UP and is currently pursuing Ph.D at the Dept. of Political Science, Jamia Millia Islamia. Raised in an Ambedkarite family, she is well acquainted with the stories of Babasaheb and Gautam Buddha, the Dalit movement, BAMCEF and BSP, the atrocities against dalit community and takes keen interest in issues of social justice, dalit feminism and exclusion of marginalized communities

 

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